प्रेम की पारदर्शिता से वैराग्य :

प्रेम की पारदर्शिता से वैराग्य :
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प्राचीन काल में उज्जैन में एक राजा हुए थे, जिनका नाम था भर्तृहरि.. वे नेक दिल और धर्मात्मा इंसान होने के साथ-साथ कवि भी थे.. उनकी पत्नी महारानी पिंगला अत्यंत रूपवती थीं.. जिन्हें वे बहुत प्यार करते थे.. महाराज भर्तृहरि ने स्त्री के सौंदर्य और उसके बिना जीवन के सूनेपन पर 100 श्लोक लिखे, जो श्रृंगार शतक/वैराग्य शतक के नाम से प्रसिद्ध हैं..

एक समय श्री गुरु गोरख नाथ जी अपने शिष्यो के साथ भ्रमण करते हुए श्री भर्तृहरी महाराज के दरबार मे पहुँचे.. भर्तृहरी ने गुरु गोरख नाथ जी की अपार सेवा की... राजा की अपार सेवा से श्री गुरु गोरख नाथ जी अति प्रसन्न हुए और राजा के ललाट पर दृष्टि डाली तो देखा कि इस पर तो एक महान संत बनने की रेखाएं हैं, किन्तु ये अपनी पत्नी के प्रेम और राज्य में पूर्ण रूप से फंसा हुआ है... गोरख नाथ जब अपने शिष्यों के साथ जाने लगे तो राजा ने उनको प्रणाम किया तब गुरु गोरख नाथ ने झोले में से एक फल निकाल कर राजा को दिया और कहा यह अमरफल है जो इसे खा लेगा वह कभी बूढ़ा नही होगा, कभी रोगी नही होगा हमेशा जवान सुन्दर रहेगा किसी प्रकार की जरा व्याधि भी उसे नही सताएगी... उसके बाद गुरु गोरख नाथ तो अलख निरंजन कहते हुए भ्रमण के लिए चले गए...

उनके जाने के बाद राजा ने अमरफल को देखा, उसे अपनी पत्नी से विशेष प्रेम था, इसलिए राजा ने विचार किया कि यह फल मैं अपनी पत्नी को खिला दूं तो वह सुंदर और जवान रहेगी, उसको कभी बुढ़ापा नही आएगा.. ये सोचकर राजा ने वह अमरफल रानी को दे दिया तथा उसे फल की विशेषता भी बता दी... लेकिन रानी का विशेष लगाव तो नगर के कोतवाल से था.. इसलिए रानी ने अमरफल कोतवाल को दे दिया और इस फल की विशेषता से अवगत कराते हुए कहा कि तुम इसे खा लेना... फल ले कर कोतवाल जब महल से बाहर निकला तो सोचने लगा कि रानी के साथ तो मुझे धन-दौलत के लिए झूठ-मूठ ही प्रेम का नाटक करना पड़ता है और यह फल खाकर मैं भी क्या करूंगा.. इसे मैं अपनी परम मित्र राज नर्तकी को दे देता हूं... 

वह कभी मेरी कोई बात नहीं टालती.. मैं उससे प्रेम भी करता हूं.. और यदि वह सदा युवा रहेगी, तो दूसरों को भी सुख दे पाएगी.. उसने वह फल अपनी उस नर्तकी मित्र को दे दिया.. राज नर्तकी ने कोई उत्तर नहीं दिया और अमरफल अपने पास रख लिया... कोतवाल के जाने के बाद उसने सोचा कि कौन मूर्ख यह पापी जीवन लंबा जीना चाहेगा.. हमारे देश का राजा बहुत अच्छा है, धर्मात्मा है, उसे ही लंबा जीवन जीना चाहिए.. यह सोच कर उसने किसी प्रकार से राजा से मिलने का समय लिया और एकांत में उस फल की विशेषता सुना कर उसे राजा को दे दिया और कहा कि महाराज, आप इसे खा लेना.. राजा फल को देखते ही पहचान गया और भौंचक रह गया.. पूछताछ करने से जब पूरी बात मालूम हुई, तो राजा को वैराग्य हो गया और वह राज-पाट छोड़ कर गुरु गोरख नाथ की शरण में चला गया.. वहीं उसने वैराग्य पर 100 श्लोक लिखे जो कि वैराग्य शतक के नाम से प्रसिद्ध हैं.. 
Moral of The Story :
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यही इस संसार की वास्तविकता है.. एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से प्रेम करता है और चाहता है कि वह व्यक्ति भी उसे उतना ही प्रेम करे.. परंतु विडंबना यह है कि वह दूसरा व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से प्रेम करता है.. इसका कारण यह है कि संसार इसके सभी प्राणी अपूर्ण हैं.. सब में कुछ कुछ कमी है.. सिर्फ एक ईश्वर ही पूर्ण है.. एक वही है जो हर जीव से उतना ही प्रेम करता है, जितना जीव उससे करता है.. इसलिए हमें प्रेम ईश्वर से ही करनी चाहिए.